कुछ ज़ख़्म इतने गहरे होते हैं
कि उनको भरना
वक़्त के बस की बात नही होती
मोहब्बत और साथ के
मरहम के बिना मुमकिन नहीं
और जब ये नहीं मिलते
तो ये खुले ज़ख़्म रिसते रहते है
हर पल रिसते रिसते
ये नासूर बन कर कचोटते रहते हैं
तुम मेरी रूह पे बना
ऐसा ही एक खुला हुआ नासूर हो
जिसे कोई नहीं भर सकता

Wah
On Wed, Mar 24, 2021, 20:56 Ruchi Kokcha Writes… wrote:
> RuchiKokcha posted: ” कुछ ज़ख़्म इतने गहरे होते हैंकि उनको भरनावक़्त के बस > की बात नही होतीमोहब्बत और साथ केमरहम के बिना मुमकिन नहींऔर जब ये नहीं > मिलतेतो ये खुले ज़ख़्म रिसते रहते हैहर पल रिसते रिसतेये नासूर बन कर कचोटते > रहते हैंतुम मेरी रूह पे बना ऐसा ही एक खुला हुआ नासूर होज” >
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